कोई तुझ सा नहीं….
कोई तुझसा नहीं —
तू इस-सा,उस-सा,किसी-सा नहीं
तू बस तुझ-सा,कोई तुझ-सा नहीं
बड़ी अनोखी संरचना प्रकृति की
कोई दिखता यहाँ, किसी-सा नहीं
गढ़ा है विलक्षण कुदरत ने सबको
वो तुझ-सा नहीं, तू उस-सा नहीं
नकल करे फिर क्यों तू किसी की
बन सकता जब तू किसी-सा नहीं
जगा स्वत्व और जान तू निज को
सोच ले मन में कोई मुझ सा नहीं
कम न आँक किसी से तू खुद को
कर सके काम कोई तुझ-सा नहीं
तू है अनूठा, तुझ-सा है बस तू ही
किसी और संग तेरा हिस्सा नहीं
जो बदा है किस्मत में ‘सीमा’ तेरी
वो नियति तेरी, कोई किस्सा नहीं
– सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“चाहत चकोर की” से