कोई और ठिकाना न मिलेगा
ऐसे न जाओ इन आंखों से निकलकर,
कोई और ठिकाना न मिलेगा।
भटकोगे इस कदर कि कहीं भी आशियाना न मिलेगा।
जाने कितने किस्से लिखे जाएंगे मोहब्बत के मगर,
अपने प्यार का इस जहां में कोई फसाना न मिलेगा।
हम नहीं होंगे तो किसको सताओगे,
फिर कभी ये रूठना मनाना न मिलेगा।
किसको देखोगे चोरी चोरी छिप छिपकर,
फिर ये झूठा बहाना न मिलेगा।
हमसे प्यारा कोई मिल जाए तो कहना,
ये दावा है मेरा कि फिर कहीं ऐसा रूप सुहाना न मिलेगा।
इश्क न करेगा इतना तुमसे, जैसे हमने किया है,
हमारे बाद ये प्यार का खजाना न मिलेगा।