किस बात के कॉमरेड किस बात के धर्मनिरपेक्ष!!
किस बात के कॉमरेड,
बे फालतू के धर्मनिरपेक्ष,
किस के शहीद,
कहाँ के गरीब,
सिर्फ कहने सुनने को नसीब!
वर्ना,
मतदान के समय,
सब एक कैसे हो जाते,
सिर्फ हिंदू-मुस्लमान के नाम पर,
जबकि,
कसा जाना था काम पर,
पर नहीं,
हमें हिन्दू-मुस्लमान दिखना था,
काम धाम की बाद में सोचते हैं,
जब अपनी जरुरतें ,
तब याद आती हैं,
तो फिर हम फरमाते हैं,
रोजगार नही,
महगांई बढ रही,
जीना मुहाल है,
पर यही तो वह सवाल है,
मतदान किस बात पर किया था,
हिन्दू मुस्लमान पर ,
तो फिर जो हो रहा है,
वह सहज स्वीकार करो,
न महगांई पर बात करो,
न रोजगार का जिक्र करो,
ना अस्मत पर ध्यान धरो,
ना अमीर गरीब की चर्चा करो,
पेट भर अनाज तो मिल ही जाता है,
खाओ पियो मौज करो!