*कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)*
कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)
कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल
लगी इमरजेंसी कुटिल, चलती चाबुक-चाल
चलती चाबुक-चाल, हुआ जनतंत्र नदारत
मनमानी का खेल, देखता कातर भारत
कहते रवि कविराय, देश कारागृह-जैसे
तंत्र निरंकुश घोर, दमन थे कैसे-कैसे
कातर = भयभीत
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451