कैसे जताएं आभार पितामह
कैसे जताएं आभार पिताजी
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बरगद की शीतल है छाया जैसा
घर परिवार का आधार पिताजी
इच्छाओं की पूर्ति करता रहता
निज की इच्छाएँ मार पिता जी
सुख, समृद्धि, खुशहाली लाता
खुद को कर बदहाल पिताजी
प्रेम अनुराग की सच्ची है मूर्त
प्रदर्शन से बहुत सुदूर पिताजी
माँ का साया बनकर हमसाया
माँ की माँग का सिंदूर पिताजी
ममतामयी का अथाह समन्दर
कठोरता भरा है प्यार पिताजी
गर्मी ,सर्दी,वर्षा और धूप छांव
मौसम की सहता मार पिताजी
दौड़ धूप कर अर्जन है करता
ऐशोआराम करवाए पिताजी
दुख दर्दों को चुपचाप सहता
खुशियों का है अंबार पिताजी
सुखविंद्र सदा ही ऋणी रहेगा
कैसे जताए आभार पिताजी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)