कैसे खड़े हों जब मिला आधार भी नहीं
कैसे खड़े हों जब मिला आधार भी नहीं
कोई सहारा देने को तैयार भी नहीं
कोई नचा सके हमे कठपुतली की तरह
इतने हुए हैं हम अभी लाचार भी नहीं
है कश्मकश अजीब सी ले कैसे फैसला
इंकार गर नहीं है तो स्वीकार भी नहीं
पथराई इंतज़ार में आँखें भी इस तरह
अब बहती इनसे आँसुओं की धार भी नहीं
होगी निरोगी काया रहेगा प्रसन्न मन
योगा से होंगे तुम कभी बीमार भी नही
रखते सदा नकाब वो चेहरे पे ‘अर्चना’
तरसा दिया हमें दिये दीदार भी नहीं
18-12-2017
डॉ अर्चना गुप्ता