कैसे क्यों की दुविधा में सारा जीवन कट जाता है
कैसे अच्छा वक्ता भी हकलाने लग जाता है
क्यों मन को हल्का करना भी भारी बन जाता है।
कैसे भरी दोपहरी में भी बादल अंधेरा कर जाता है
क्यों सबके संग होने पर भी दिल तन्हा हो जाता है।
कैसे उसके बिन हँसना भी भारी लगता है
क्यों उसके रोने पर जीना मक्कारी लगता है।
कैसे हर हादसा उससे जुड़ने लग जाता है
क्यों ख़ुद में जीने वाला एहसासों में खो जाता है।
कैसे मिल में तुझसे दुनिया वो मुझको भटकाती है
क्यों घूम फिर कर चीजें सारी उस तक ही रुक जाती है।
कैसे रंग बिरंगी दुनियां में काला लुभाने लगता है
क्यों दौड़ती भागती ज़िन्दगी में आँसू भी पानी लगता है।
कैसे क्यों की दुविधा में सारा जीवन कट जाता है
क्यों एक चाहत की ख़ातिर इंसान जीना भूल जाता है।