कैसी प्रथा ..?
बेचैन , बेसबब, बेहिसाब कड़वे घूंट पिलाती,
सदियों से चलती अनवरत
कुप्रथा,
रागनी भी जलाती अंतर्मन की व्यथा , अश्रु से जो बहती अनवरत कथा,
परंपराओ की तंग , कंकरिली,सीलन ,संग स्याह सुरंगे संस्कारो की बेड़ियां जिसमे बंधे स्वपन रेंगते हुए चल रहे चांद छूने के दौर में कैसी प्रथा ..?
अश्रु