कैकयी
मैं कैकयी हूँ मेरा मेरा दर्द तुम क्या जानो
एक स्त्री की पीड़ा को भला तुम क्या जानो
जिसे ह्रदय में पथ्थर रखकर भेजा था वन
वो मेरा पुत्र राम था ये सब तुम क्या जानो
माँ की ममता तड़पी है ये तुम क्या जानो
अधर्म मुक्त करनी थी धरती ये तुम क्या जानो
रघुकुल का सम्मान मुकुट था पापी के पास
जानते हुये भी ये सब भला तुम क्या जानो
क्या बीती होगी मुझ माँ पर ये तुम क्या जानो
कैसे भेजा होगा नयनों प्यारा वन ये क्या जानो
मैं कलंकिनी हूँ कुलटा हूँ औऱ क्या कहते हो
मैं दिये की बत्ती सी जली ये तुम क्या जानो
पिया है मैंने भी हलाहल ये तुम क्या जानो
रोयी हूँ मैं भी पल पल ये सब क्या जानो
भरत से भी प्रिय था मुझे मेरा प्यारा राम
भला दुनियाँ में ये सब कुछ तुम क्या जानो
मैंने भी किया है त्याग भला तुम क्या जानो
मान प्रतिष्ठा सब धूमिल की है ये क्या जानो
मै ठहरी एक अभागिन अबला निर्बल स्त्री
इस स्त्री की व्यथा को तुम सब क्या जानो
रघुकुल की आबरू बचानी थी तुम क्या जानो
मुकुट बिन बेकार सब तैयार थी ये क्या जानो
अपने प्राणों से प्रिये राम को भेजा था वन में
वहाँ मेरा बेटा था ये सबकुछ तुम क्या जानो
मैं अभागिन कैकयी हूँ मुझे तुम क्या जानो
जली हूँ अग्नि कुंड सी तुम क्या पहिचानो
शिव की तरह पीकर हलाहल नीलकंठ न हुई
हो गई हूँ गुमनाम मुझे तुम क्या पहिचानो
मैं बेबसी हूँ उदासी की सखी हूँ तुम क्या जानो
मैं भी एक औरत हूँ भला मुझे तुम क्या जानो
किस तरह भेजा है 14 वर्ष वन में पुत्र को
ये पीड़ा भला माँ के सिवा तुम क्या जानो
ऋषभ परेशान है तुम्हारे लिये तुम क्या जानो
कैकयी की वेदना को भी तुम क्या जानो
अधर्म को मिटाकर रामराज्य लाना था उसे
इस त्याग की कहानी को तुम क्या जानो