के के की याद में ..
संगीत के बुझते हुए चिरागों को जिसने रोशन किया,
महफिलों में अपनी मधुर आवाज से रंग सा भर दिया,
आसमान से ऊंची और सागर सी गहराई थी जिसमें ,
अपने है स्वर को तुमने जज्बातों से तरन्नुम दिया ।
अपनी तरह का एक बेजोड़ और उम्दा कलाकार था ,
मगर इंसानियत का सर भी नाज़ से ऊंचा कर दिया ।
अभी तो तुमने और बिखेरने थे अपने नगमों के मोती
मगर क्यों बहुत जल्दी कज़ा का बुलावा आ गया ?
यह तो अभी रुखसत होने की उम्र नहीं थी तुम्हारी ,
क्यों अपने चाहने वालों को इस तरह रोता छोड़ दिया
याद आओगे तुम बहुत कसम से प्यारे” कृष्णा”!
संगीत का मधुबन जो तुम विरासत में छोड़ गए।