#कु-भद्रा तिथि
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★ #कुभद्रा तिथि ★
अधरों पे रौनक यों बिछी है
निश्चित है प्रीत पीरसिंची है
जगती के कांधे रीतों का बोझा
यह रामकहानी कर्मोंलिखी है
उत्सव मेले उनसे उन तक
मन पंछी हठ दांतभिंची है
धरती रही न पांवों के नीचे
उड़ान कैसी यह प्राणखिंची है
स्वर्णिम संसार सपनों का जैसे
सोया नहीं हूँ आँख मिची है
कल की बातें कल पे धर दीं
आज जैसे कु-भद्रा तिथि है
कहते बने न सहते बने
रैनधुपीली दुपहरी कलिसिंची है
हुआ है न होगा साकार सपना
नींदमहावर जिस पांव रची है
प्रीतपीर सखि सदासुहागन
वे भाग्यबली यह जिनकी सखी है
अधरों पे रौनक यों बिछी है . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२