कुहरा
#साहित्य संगम मनहरण घनाक्षरी
01
मौसम में बदलाव,ठंड पानी का भराव।
सघन हो जल वाष्प , बना देती कुहरा।
वायु व्याप्त जल वाष्प, नमी की बढ़ती नाप।
प्रकाश की कमी हुई , अंधेरा मार्ग भरा ।
सूर्य लगता चंद्र सा, प्रकाश नहीं पूर्व सा।
शीत का प्रकोप हुआ, ओस फैलती धरा ।
ज्यों गगन सूर्य चढ़ा,गरमी मौसम बढ़ा ।
त्यो मौसम होता साफ,मिटता है कुहरा ।
02
कुहरा मन का बुरा अंधेरा हृदय भरा ।
अच्छा बुरा भूले लोग भ्रमित ही मानिए।
स्वार्थ साधने के लिए संघनित भाव किए
दुष्ट कर्म प्रवृत्ति का कारण ही जानिए।
पाकर ताप सूर्य का,कुहरा मिटे ठंड का
ज्ञान रूप प्रकाश से अंधेरा मिटाइए।
प्रकृति तक ठीक है, प्रवृत्ति तो गंभीर है
मन मंदिर कोने में दीप तो जलाइए।
राजेश कौरव सुमित्र