कुसंग
कुसंग
डरो सदा कुसंग से जहर सदा इसे समझ।
रहो न पास में कभी दिखे कदा नहीं सहज।
करे सदैव गन्दगी कुबुद्धि का शिकार है।
बुरा सदैव सोचता विशेष भूमि भार है।
सलाह-मशविरा करे अनर्थ को परोसता।
नहीं विचार स्तुत्य है स्वभाव में कठोरता।
मलीन सर्व भाव है हृदय कुटिल कराल है।
भुजंग है करैत है सदैव क्रूर व्याल है।
मनुष्यता नहीं यहाँ पिशाच की प्रवृत्ति है।
सहर्ष ले कृपाण हस्त भ्रष्ट चित्तवृत्ति है।
कुरीति है कुकर्म है कुरूप अंग-अंग है।
निशा समान भय प्रधान क्रुद्ध भूत रंग है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।