कुम्हार
मिट्टी के बर्तन बनानेवाले
कहलाते है वे कुम्हार,
पृथ्वी की रचना करनेवाले
भगवान को भी देते आकार;
क्या गरिमा है उसकी
हमसे न पूछो मेरे यार,
अदृृश्यमान सृष्टिकर्ता है भगवान
दृृश्यमान है सिर्फ कुम्हार;
मिट्टी को सोना बना देते
फिरभी जुटा न पाते रोटी,
जिंदगी गुजरती है काँटों पर
मुंह से उफ निकलती नहीं ।