कुण्डलिया
कुण्डलिया
गीता कहती कर्म का, नहीं जगत में तोड़ ।
सदकर्मों में लीन हो , फल की चिंता छोड़।
फल की चिंता छोड़, कर्म को गहना माना ।
जान गया वो सत्य , मर्म यह जिसने जाना ।
जी जाता संसार , सोम जो इसका पीता ।
कभी न छोड़ो कर्म , सदा यह कहती गीता ।
सुशील सरना / 27-10-24