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27 Oct 2024 · 1 min read

कुण्डलिया

कुण्डलिया

गीता कहती कर्म का, नहीं जगत में तोड़ ।
सदकर्मों में लीन हो , फल की चिंता छोड़।
फल की चिंता छोड़, कर्म को गहना माना ।
जान गया वो सत्य , मर्म यह जिसने जाना ।
जी जाता संसार , सोम जो इसका पीता ।
कभी न छोड़ो कर्म , सदा यह कहती गीता ।

सुशील सरना / 27-10-24

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