कुछ शब्द ही तो थे…
विषय- कुछ शब्द ही तो थे…
विद्या -कविता
कुछ शब्द ही तो है
जो जीना सिखा रहे हैं
शब्द शब्द से मिलकर
एक कविता बना रहे हैं
तेरे मेरे एहसासों को
फिर से जीना सिखा रहे हैं।
कुछ शब्द ही तो है….
कितना फर्क पड़ गया थे और है में
उसने कहा शब्द है नहीं थे ?
जो अब और भी उलझ गए हैं
इन शब्दों की परिभाषा में
तुमने तो हंस कर कह दिया
क्यों द्वंद मचाते हो
है और था के बीच में।
कुछ शब्द ही तो थे…
दोनों शब्दों का क्या कभी
पुनर्मिलन हो सकता है
अगर हां तो ठीक है
अगर नहीं तो फिर शुरू
खत्म यह बात करो
है को छोड़ो था की बात करो
कुछ शब्द ही तो थे।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यूपी)
मौलिक रचना