कुछ यूं जिंदगी की मौज लिए जा रही हूं,
कुछ यूं जिंदगी की मौज लिए जा रही हूं,
सारे जख्म हंसके सीए जा रही हूं।
जब मुस्कुराती हूं तो छलकते है आंसू,
इन आंसुओ को चुपचाप पिए जा रही हूं।
कितनी अकेली हूं ये कैसे बताऊं किसी को,
मैं खुद अपनी लाश को कंधा दिए जा रही हूं।
न कोई महफिल है और न ही कोई हमदम,
बस अपनेआप से बातें किए जा रही हूं।
तुम क्या जानो कितनी तन्हा हूं मैं
अकेले ही सफर जिंदगी का किए जा रही हूं।