“ कुछ ना कुछ हम भी लिखते हैं “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
===============
कौन कहता है
कि हम लिखते हैं ?
बस यूंही अपना
दिल बहला लेते हैं !!
शब्दों का भंडार
नहीं हैं !
अलंकारों का ज्ञान
नहीं है !!
रस कितने होते हैं ?
इसका भी अनुमान
नहीं है !!
लय ,सरगम तो अच्छे
लगते हैं !
सुर और तालों के
गीतों को सुनते
रहते हैं !!
हम भी इनलोगों को
देखके कुछ सीखा
करते हैं !
सीधी- साधी लहजों
में हम भी कहते हैं !!
व्यंगों के बाणों को
हम खुद सहते हैं !
भूलके भी
लोगों को आहत
नहीं करते हैं !!
श्रेष्ठों को आदर सत्कार
समतुल्य को नमस्कार
सदा करते रहते हैं !
छोटों को भी हम
प्यार सदा किया करते हैं !!
मौन नहीं रहना सीखा
जब लिखना चाहा
लिख बैठे !
प्यार जहां जरूरत
पड़ती है
प्यार वहीं हम कर बैठे !!
=============
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत