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20 Sep 2022 · 1 min read

कुछ दोहे…

३- कुछ दोहे…

पुष्प मधुर चुन भावमय, सजा रही दरबार।
मेरे घर भी अंबिके, आना अबकी बार।।१।।

जगत-जननी माँ अंबे, ले मेरी भी खैर।
मैं भी तेरा अंश हूँ, समझ न मुझको गैर।।२।।

बात न बनती युद्ध से, होता बस संहार।
त्राहित्राहि जनता करे, हर सूं हाहाकार।।३।।

दुनिया एक कुटुंब है, रहें सभी मिल साथ।
स्वार्थ पूर्ण इस जंग से, आएगा क्या हाथ।।४।।

बड़ा असंगत आजकल, जीवन का व्यापार।
टोटा है मुस्कान का, आँसू की भरमार।।५।।

सुख की सब जेबें फटीं, भरा गमों से कोष।
कमी हमारे भाग्य की, नहीं किसी का दोष।।६।।

निंदा सुन भड़को नहीं, सहज करो स्वीकार।
निंदा कल्मष नाशिनी, हर ले सकल विकार।।७।।

नस-नस में रस पूरता, आया फागुन मास।
रिसते रिश्तों में चलो, भर दें नयी उजास।।८।।

मिटते नहीं मिटाए, लिखे करम के लेख।
मस्तक पर सबके खिंची, अमिट भाग्य की रेख।।९।।

रखते कुल की लाज जो,कहते उन्हें कुलीन।
उकसाएँ कितने मगर, बने रहें शालीन।।१०।।

पकड़ न धीमी हो कहीं, थामे रखना हाथ।
रेले में इस भीड़ के, छूट न जाए साथ।।११।।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
साझा संग्रह ‘प्रभांजलि’ में प्रकाशित

Language: Hindi
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