कुछ दोहे
बापू देख्या बेटा देख्या, देखा सकल जहान्
देखणा छूट गया आपा,कैसे मिलता सुकून .
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खाऊं न खाण दयूं , रखूं भूखे का भूखा,
संपदा नै सिकोड़ कै,मारूं एक बै फांखा.
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ज्योत जलाऊँ राम की, कहें जय श्रीराम.
ममता यूं चीढ़ गई, कर दिया काम तमाम.
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जित जाऊं उत फूंक आऊं मूर्त मह प्राण.
सब जगह सम्प्रदाय, जाग सके सो जाण.
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गढ्ढे मुर्दे उखाड चढे प्रयास, चढा मैं परवान.
गांधी नेहरू की रूह का करता रहा बखान.
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निवेशीकरण करके, विदेशों में भेजा आमंत्रण.
विनिमय विनिवेशीकरण, पडे आफत में प्राण.