कुछ तो बोलो……
कुछ तो बोलो……
कुछ तो बोलो कि बे – आवाज़ क्यूँ हो ।
बदलते हुए लम्हों से यूँ नाराज़ क्यूँ हो ।
आज हो तो आज की इबाबत कर लो –
रूह हो तो ज़िस्म की मोहताज़ क्यूँ हो।
सुशील सरना
कुछ तो बोलो……
कुछ तो बोलो कि बे – आवाज़ क्यूँ हो ।
बदलते हुए लम्हों से यूँ नाराज़ क्यूँ हो ।
आज हो तो आज की इबाबत कर लो –
रूह हो तो ज़िस्म की मोहताज़ क्यूँ हो।
सुशील सरना