Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Feb 2021 · 4 min read

कुछ ख़त मोहब्बत के , दोहा गीत व दोहे

१-#दोहा_गीत

चन्द्रबदन मृगलोचनी, चपला रूप अनूप |(मुखड़ा)
सुरभित गुंजन कंठ है , लगे गुनगुनी धूप ||(टेक)

पग पायल है नाचती , निकसत है झंकार |(अंतरा)
कटि करधोनी खिल रही, लगती हँसत फुहार ||
नथनी उसकी नासिका , खिले गगन में चंद |
तिल होंठों पर देखकर , बनते कवि के छंद ||

गड्ढे गालों पर पड़े , शरमाता है रूप |(पूरक)
सुरभित ——————————————–||

मोती लगते नेत्र है , काजल कोर कमाल |
माथे बेंदी झूलती , बिदिया करे धमाल ||
अधर किनारे प्रेम के , रस की लगते खान |
नयनो पर भौहें तनी , जैसे चढ़ी कमान ||

झुमके झूले कर्ण पर , ज्यों झूले पर भूप |
सुरभित ——————————————-||

निकले वचन सुभाष है , लगते मदिरा पान |
केश घटा घनघोर है , ग्रीवा रजत समान ||
कोमल किसलय हस्त है ,दंत धवल नग नूर |
चहक रही है चूड़ियाँ, राग वहे भरपूर ||

नचती नागिन सी चले , अनुपम धरें स्वरूप |
सुरभित———————————————–||

सुभाष सिंघई ,जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
—————-
२-दोहा छंद में गीत –

कमर लचकती देखकर , आता है भूचाल |(मुखड़ा)
गोरी की पग चाल भी , करती खूब‌ कमाल ||(टेक)

तीखे गोरी नैन हैं , पूरे लगें कटार |(अंतरा)
घायल हैं सब देखकर , नहीं कोई उपचार ||
डाक्टर और हकीम हैं ,गोरी के मधु बोल |
क्रय करने यदि बैठते‌, हैं सोने की तोल ||

गोरी की चूड़ी बजे, लोग मिलाते ताल |(पूरक)
गोरी की पग चाल भी , करती खूब कमाल ||(टेक)

गोरी की हर सांस से , उड़ती मधुर सुगंध |(मुखडा)
शीतल मंद समीर है , साथ लिए मकरंद ||
चंदा भी शर्मा रहा , गोरी का लख रूप |
ग्रीष्म काल में शीत है , और शीत में धूप ||

लोग घरों से निकलकर, रहें पूँछते हाल ||(पूरक)
गोरी की पग चाल भी, करती खूब कमाल ||(टेक)

गोरी हँसकर पूँछती , कैसे है‌ं अब हाल |(अंतरा)
उत्तर भी सब दे रहे, तेरी सब पर ढाल ||
समय चक्र चलता रहे , सबके सुंदर गेह |
शेष जिंदगी तक जुड़े, गोरी से बस नेह ||

पूरे गांव में हो गई , गोरी आज ख्याल |(पूरक)
गोरी की पग चाल भी ,करती खूब कमाल ||(टेक)

सृजन -सुभाष सिंघई , जतारा (टीकमगढ़ ) म० प्र०
————————-
३-दोहा छंद‌‌ में गीत –

हर अक्षर‌ में भर रही, साजन सुनो सुगंध |(मुखड़ा)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरा मकरंद ||(टेक)

पाती पाकर पवन भी चला सजन के पास |(अंतरा
विरहा की सांसे लिए ,अपने सँग में खास ||
थोड़े‌ में ही जानिए , साजन मेरा दर्द |
शब्द न मुझको मिल रहे, हुए‌ सिकुड़कर सर्द ||

तुम बिन जग सूना लगे, रोता है आनंद |(पूरक)
पाती लिखकर भेजती , नेह भरा मकरंद ||(टेक)

काजल बहकर गाल पर , रोता है शृंगार | (अंतरा)
सखियां आकर कह रहीं,कहाँ गया भरतार ||
तू क्यों सँवरें रात- दिन , साजन हैं परदेश |
प्रीतम क्या अब आ रहें, धरें भ्रमर परिवेश |

करें इशारा नैन से , सजनी कैसे छंद |(पूरक)
पाती ——————–|| ( टेक)

सब कहते मैं मोरनी , नयन लगे चितचोर |(अंतरा)
चढ़े धनुष पर तीर सी , काजल की है कोर ||
बनी बावरी घूमती , समझ न आती बात |
कब होती अब भोर है , कब होता दिन-रात ||

विरह रूप में लग रही ,पागल हुआ गयंद |{पूरक)
पाती ———— ‌ (टेक )

सृजन – सुभाष सिंघई
जतारा (टीकमगढ़) म० प्र०
——————
#दोहे-

नारी के श्रृंङ्गार में , लज्जा पुष्प सरोज |
आंखों से मानव वहाँ ,करे गुणों की खोज ||

श्रृंङ्गार सदा जानिए, नारी मन का नेह |
देवी के प्रतिरूप से ,मंदिर होता गेह ||

लोग यहाँ नीरस नहीं , है सौलह श्रृंङ्गार |
मन में शीतलता भरें, राधा-कृष्णा प्यार ||

अंग प्रदर्शन चल रहा, श्रृंङ्गारों के नाम |
नहीं समर्थन हम करें ,जहाँ प्रकट हो काम ||

सुंदरता को चाहते , पुरुष वर्ग के नेैन |
पर सुंदरता नाम पर , नहीं वासना ‌ सैन ||

नारी के श्रृंङ्गार में , उचित रहें परिधान |
पुरुष वर्ग के देखिए , चेहरे पर मुस्कान ||

उचित रहे श्रृंङ्गार जब ,बढ़ती उसकी शान |
भरी भीड़ भी कर उठे , नारी का गुणगान ||

अभिनंदन चंदन करो, लख सौलह श्रृंङ्गार |
नारी देवी जानिए , संस्कार. अवतार ||

मै सुभाष अर्पण करुँ , कुमकुम हल्दी फूल |
अंग प्रदर्शन नाम की , नारी करे न भूल ||

श्रृंङ्गार के नाम पर जब वल्गर नारी चित्र देखता हूँ -तव मन क्षोभ से भर जाता है , तब श्रृंङ्गार के ऊपर अपना नजरिया पेश कर रहा हूँ कि कुछ संदेश जाऐ कि श्रृंङ्गार क्या है

सृजन – सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य, दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ)म०प्र०

रचनाकार का घोषणा पत्र-

यह मेरी स्वरचित एवं मौलिक रचना है जिसको प्रकाशित करने का कॉपीराइट मेरे पास है और मैं स्वेच्छा से इस रचना को साहित्यपीडिया की इस प्रतियोगिता में सम्मलित कर रहा/रही हूँ।
मैं इस प्रतियोगिता के एवं साहित्यपीडिया पर रचना प्रकाशन के सभी नियम एवं शर्तों से पूरी तरह सहमत हूँ। अगर मेरे द्वारा किसी नियम का उल्लंघन होता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी होगी।
अगर मेरे द्वारा दी गयी कोई भी सूचना ग़लत निकलती है या मेरी रचना किसी के कॉपीराइट का उल्लंघन करती है तो इसकी पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मेरी है, साहित्यपीडिया का इसमें कोई दायित्व नहीं होगा।
मैं समझता/समझती हूँ कि अगर मेरी रचना साहित्यपीडिया के नियमों के अनुसार नहीं हुई तो उसे इस प्रतियोगिता में शामिल नहीं किया जायेगा; रचना को लेकर साहित्यपीडिया टीम का निर्णय ही अंतिम होगा और मुझे वह निर्णय स्वीकार होगा।
सुभाष सिंघई
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०

8 Likes · 51 Comments · 775 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जब दिल ही उससे जा लगा..!
जब दिल ही उससे जा लगा..!
SPK Sachin Lodhi
लिखने – पढ़ने का उद्देश्य/ musafir baitha
लिखने – पढ़ने का उद्देश्य/ musafir baitha
Dr MusafiR BaithA
लाभ की इच्छा से ही लोभ का जन्म होता है।
लाभ की इच्छा से ही लोभ का जन्म होता है।
Rj Anand Prajapati
सार छंद विधान सउदाहरण / (छन्न पकैया )
सार छंद विधान सउदाहरण / (छन्न पकैया )
Subhash Singhai
होली है ....
होली है ....
Kshma Urmila
पृथ्वीराज
पृथ्वीराज
Sandeep Pande
क्रोध
क्रोध
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
🙅चुनावी साल🙅
🙅चुनावी साल🙅
*Author प्रणय प्रभात*
💐अज्ञात के प्रति-151💐
💐अज्ञात के प्रति-151💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
सोचता हूँ के एक ही ख्वाईश
सोचता हूँ के एक ही ख्वाईश
'अशांत' शेखर
कुछ मुक्तक...
कुछ मुक्तक...
डॉ.सीमा अग्रवाल
क्यों दोष देते हो
क्यों दोष देते हो
Suryakant Dwivedi
@ खोज @
@ खोज @
Prashant Tiwari
छोटी- छोटी प्रस्तुतियों को भी लोग पढ़ते नहीं हैं, फिर फेसबूक
छोटी- छोटी प्रस्तुतियों को भी लोग पढ़ते नहीं हैं, फिर फेसबूक
DrLakshman Jha Parimal
माँ काली
माँ काली
Sidhartha Mishra
*भरोसा तुम ही पर मालिक, तुम्हारे ही सहारे हों (मुक्तक)*
*भरोसा तुम ही पर मालिक, तुम्हारे ही सहारे हों (मुक्तक)*
Ravi Prakash
शायरी
शायरी
Jayvind Singh Ngariya Ji Datia MP 475661
शीत की शब में .....
शीत की शब में .....
sushil sarna
मैं  गुल  बना  गुलशन  बना  गुलफाम   बना
मैं गुल बना गुलशन बना गुलफाम बना
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।
प्रेम अपाहिज ठगा ठगा सा, कली भरोसे की कुम्हलाईं।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
वह एक हीं फूल है
वह एक हीं फूल है
Shweta Soni
मुसाफिर हो तुम भी
मुसाफिर हो तुम भी
Satish Srijan
बाबा महादेव को पूरे अन्तःकरण से समर्पित ---
बाबा महादेव को पूरे अन्तःकरण से समर्पित ---
सिद्धार्थ गोरखपुरी
देखा है।
देखा है।
Shriyansh Gupta
3085.*पूर्णिका*
3085.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
🌼एकांत🌼
🌼एकांत🌼
ruby kumari
कभी शांत कभी नटखट
कभी शांत कभी नटखट
Neelam Sharma
जरूरत से ज्यादा
जरूरत से ज्यादा
Ragini Kumari
फूल और तुम
फूल और तुम
Sidhant Sharma
मेरी आँखों से भी नींदों का रिश्ता टूट जाता है
मेरी आँखों से भी नींदों का रिश्ता टूट जाता है
Aadarsh Dubey
Loading...