“ कुछ खट्टी कुछ मीठी “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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बहुत दिन हो गए
हम कुछ कह ना सके
उथल – पुथल भावनाओं
की लहरें हिलकोरे
मारती थीं !
कुछ कहने को जी करता था
कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादों को संभाले
रखा था !!
दर्द का एहसास ,जनमानस की
पीड़ाएं कराह रही थी ,
किसानों की पीड़ा ,
कोविड़ प्रकोप ,
असीमित महँगायी की मार ,
बेरोजगारी की भयावह तस्वीर ,
नरिओं पर अत्याचार ,
अपहरण ,बलात्कार ,
अल्पसंख्यकों की दुर्दशा
में हम उलझे हुए थे !
चलो अच्छा हुआ
मोतियाविन्द की सिल्ली
कुछ दिनों के लिए छाई हुई थी !
हमें दर्द का एहसास होता
रेल ,बैंक ,लालकिला ,और सारे
देश को मिलकर बेच डाला !
रोशनी तो शल्य चिकित्सा
के बाद आई ,
चलो अच्छा हुआ हम
कुछ देख ना सके !
और किसी ने आकार चुपके से
मेरे कानों में कुछ कहा भी नहीं !
अब नींद खुली पर क्या फायदा
हमने सोचा था कोई युगपुरुष आएगा !
जब मेरी आँखें ठीक हो जाएंगी
तब स्वर्णिम भारत का यशगान
सबके कंठों में गुनगुनाएगा !
पर कुछ भी नहीं बदला
इन अंतरालों में हम आहत होते गए ,
आँखें खुली सब दिखने लगा !
कुछ ही दिनों में हमरा देश बदल गया ,
इन बदले हुए परिवेशों में
हम अपनी व्यथा सुनते हैं !
फिर सबको अपने भारत की बीती
कथा बताते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका