कुआ ढूंक के…
कुआ ढूंक के देखें पानी ।
इनकी बुद्धि कहां हिरानी ।।
पेड़ कटे सब मिट गए जंगल।
वर्षा गई , बात ने जानी ।।
सूख रहीं है नदियां सारी।
तो सुई कर रय हैं मनमानी।।
अभै समय है चेत सकत हो ।
काहे बर्बादी की ठानी ।।
फोटू खिचावे पेड़ लगा रहे ।
हो रही रोज व्यर्थ धन हानी ।
सही बात सुनबे की हिम्मत।
रही नहीं भई खतम कहानी ।।
डूब गए कर्जा में गरे तक।
नगद बची नई कोणी कानी ।।
– सतीश शर्मा सिहोरा, नरसिंहपुर ।