कुंडलिया
कुंडलिया
साझी छत के प्रेम की , बीत गई बरसात ।
निजता के सुख तीर पर, मिली दुखों की रात ।
मिली दुखों की रात , सताती बीती बातें ।
करके उनको याद, गुजरती रो – रो रातें ।
तनहा बैठे तीर , न आया कोई माझी ।
सपना लगती बात, अगर अब छत है साझी ।
सुशील सरना