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3 Nov 2024 · 1 min read

कुंडलिया

कुंडलिया

साझी छत के प्रेम की , बीत गई बरसात ।
निजता के सुख तीर पर, मिली दुखों की रात ।
मिली दुखों की रात , सताती बीती बातें ।
करके उनको याद, गुजरती रो – रो रातें ।
तनहा बैठे तीर , न आया कोई माझी ।
सपना लगती बात, अगर अब छत है साझी ।

सुशील सरना

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