कुंडलिया
कुंडलियां
अर्चन पूजन कर रहे,शंकर साधक राम।
अवरज लक्ष्मण साथ है, मंगल कारज धाम।।
मंगल कारज धाम, खुशी का कारण बनते।
कर भव सागर पार, नाम की माला जपते।।
‘सीमा’ मिलता मोक्ष, शांति का होता नर्तन ।
जीवन साधन मान, भाव से करना अर्चन।।
साधक लक्ष्मण राम के, सुंदर पावन शान ।
जीवन सार्थक कर रहे, बांधव ईश्वर मान।।
बांधव ईश्वर मान, सदा ही वंदन करते।
आज्ञा पालक मौन, भाव से सेवक बनते।।
सीमा कहती राज, बने सब आदर लायक ।
भाई भाई साथ,रहें बन सच्चे साधक ।।
सुमिरन राघव राम का, संकट करता पार।
पंकज जैसा गात है, वल्कल तन पर धार।।
वल्कल तन पर धार, चले हैं कानन रघुवर ।
सीता चलती साथ , बने हैं लक्ष्मण अनुचर ।।
सीमा घटती पीर, कहें ये सारे मुनिजन,
संगत गन्दी छोड़,करो नित कीर्तन सुमिरन ।
सीमा शर्मा “अंशु”