कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शब्द-जोत जलाओ
ज्योत जलाओ ज्ञान की, तमस भगाओ दूर।
करो उजाला शान से,मिले खुशी भरपूर।।
मिले खुशी भरपूर, कुसुम हैं मन के खिलते ।
पढ़ो लिखो तुम खूब,बड़े फिर पद हैं मिलते ।।
सीमा बन विद्वान, जगत में नाम कमाओ।
अंतस कर उजियार, ज्ञान की ज्योत जलाओ।।
ज्योत जलाओ प्रेम की, शपथ उठाओ आज,
हृदय बसाओ प्रीत रे, नेक करो ये काज।
नेक करो ये काज,पुण्य है इसका मिलता।
जीवन सार्थक मान, खुशी से कोई खिलता।।
सीमा कहती बैर, भाव को दूर भगाओ।
सुखी रहें सब लोग,प्रेम की ज्योत जलाओ।।
ज्योत जलाओ भक्ति की, ईश मनाओ रोज।
शुद्ध बनाओ भाव को, हृदय बढ़ाओ ओज।।
हृदय बढ़ाओ ओज, दर्श है प्रभु का मिलता।
सुमिरन कर नित राम, नाम से तनमन खिलता।।
सीमा मिलती शक्ति, प्रेम से ध्यान लगाओ।
लगती नैया पार, भक्ति की ज्योत जलाओ।।
सीमा शर्मा “अंशु”