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18 Jun 2024 · 1 min read

कुंडलिनी

कुंडलिनी

तपिश घोर से जल रहा,उबल रहा है देह।
रूठ गये हैं सूर्य अब,नहीं हृदय में नेह।।
कहें मिश्र कविराय, अग्नि उगलते अहर्निश।
कष्ट पा रहे जीव,क्रोधित सूरज की तपिश।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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