*किस शहर में रहना पड़े (हिंदी गजल/गीतिका)*
किस शहर में रहना पड़े (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
कौन जाने किसके घर को, अपना घर कहना पड़े
किसको पता किस मोड़ पर, किस शहर में रहना पड़े
(2)
अपनी गली अपने मौहल्ले, स्वप्न- से हो जाएँ न
कब हवा के संग, खुशबू-जैसे ही बहना पड़े
(3)
बोला करती जिनकी तूती, है नवाबों की तरह
दुर्भाग्य का चाबुक उन्हें भी, क्या पता सहना पड़े
(4)
अभिमान अपने रूप पर है, जिस इमारत को बहुत
किसको खबर, उसको भी एक प्रहार में ढहना पड़े
(5)
करवट बदलना, मौसमों की है सदा आदत रही
सर्दी की ऋतु के बाद, शायद आग में दहना पड़े
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 999761 5451