*किस्सा -ए- रिश्वत* ( हास्य-व्यंग्य)
किस्सा -ए- रिश्वत ( हास्य-व्यंग्य)
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रिश्वत कौन नहीं लेता ? रिश्वत कहाँ नहीं ली जाती ? और छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी कौन सी रकम की रिश्वत नहीं ली जाती ? रिश्वत का अपना एक बड़ा बाजार है । रिश्वत पारिभाषिक रूप से कहें तो वह धनराशि है जो अवैध कार्य के लिए अवैध रूप से ली जाती है अर्थात जहाँ अवैध कार्य होगा ,वहाँ रिश्वत भी होगी । इसीलिए जो लोग रिश्वत के शौकीन होते हैं, वह इस बात का प्रयत्न करते हैं कि कोई भी कार्य पूरी तरह वैध रूप से न होने पाए। अगर सारे काम सब लोगों के वैध रूप से होने लगें, तो बेचारे रिश्वतपसंद लोग रिश्वत कैसे लेंगे? किस काम की लेंगे? और उन्हें रिश्वत देने के लिए कोई जाएगा क्यों ? अगर घर बैठे लाइसेंस मिल जाए तो दफ्तर में जाकर अधिकारी को कोई रिश्वत क्यों देने लगा ?
रिश्वत देने वाले की अपनी मजबूरी होती है । रिश्वत लेने वाले का अपना गणित रहता है । रिश्वत लेने वाला इस प्रकार से जाल फैलाता है कि मछली खुद आती है और फँस जाती है। यद्यपि रिश्वत बहुत पुराना कारोबार है और पीढ़ी दर पीढ़ी रिश्वत लेते- लेते लोग बहुत समझदार हो गए हैं लेकिन फिर भी कई लोग पकड़े जाते हैं और उनकी मूर्खता पर तरस भी आता है। अरे भाई ! रिश्वत जब लेना नहीं आता था तो क्यों ली? पहले किसी गुरु के चरणों में बैठकर रिश्वत लेने के गुर सीखते। कई लोग रंगे हाथों पकड़े जाते हैं अर्थात नोटों पर लाल रंग लगा होता है । जैसे ही रिश्वत लेने वाला उन नोटों को छूता है, उसके हाथ रंग जाते हैं। और इसे साहित्य की भाषा में रंगे हाथों पकड़ना कहते हैं । कई लोग इतनी बुद्धिमत्ता के साथ रिश्वत लेते हैं कि क्या मजाल कि पूर कैरियर मैं एक बार भी पकड़े जाएं ।
बहुत से लोग अपने एजेंट की मार्फत रिश्वत लेते हैं और बड़े गर्व के साथ मूँछों पर ताव देते हुए कहते हैं कि हमने आज तक रिश्वत का एक पैसा भी अपने हाथ से नहीं लिया। अगर आप उनके गर्व से भरे हुए शब्दों की गहराई में जाँच पड़ताल करें तो आप पाएंगे कि वास्तव में उन्होंने एक भी पैसा अपने हाथ से रिश्वत का नहीं लिया है । हमेशा किसी न किसी दलाल की मार्फत ही पैसा लिया । बहुत से लोग दलाल की मार्फत रिश्वत खाने में भी पकड़े जाते हैं। दलाल नौसिखिया होता है , पकड़ा जाता है और फिर वह असली रिश्वत लेने वाले का नाम खोल देता है । किसी अच्छे रिश्वत – प्रेमी के पास आप घंटा -दो घंटा रोज बैठकर उससे ज्ञानार्जन करें तो इस बात की जानकारी मिल सकती है कि कैसे रिश्वत लेने के बाद भी आदमी कभी पकड़ा न जाए ।
मेज के नीचे से रिश्वत लेना एक मुहावरा है । जब कि सभी जानते हैं कि बड़े अधिकारियों की मेज इतनी चौड़ी लंबी होती है कि उसके नीचे से दोनों का हाथ एक दूसरे से नहीं मिल सकता।
रिश्वत लेने के मामले में कई लोग बहुत खुले हुए होते हैं अर्थात उनके किस काम का कितना रेट है यह सबको पता होता है। आदमी जाता है और दफ्तर में उनके हाथ में नोट गिन कर दे देता है। वह भी खुलेआम ले लेते हैं । इस तरह खुला खेल चलता रहता है। न लेने वाले को दिक्कत ,न देने वाले को दिक्कत । जितने रुपए इकट्ठे हुए, शाम को घर ले गए । जिस आदमी को जो काम कराना था, वह कागज पास करा कर अपने घर ले गया । दोनों खुश।
रिश्वत का ही एक आधुनिक नाम निकला है , घोटाला । घोटाला भी एक प्रकार से रिश्वत ही है लेकिन यह बहुत बड़े तामझाम के साथ किया जाता है। घोटाला बड़े लोग करते हैं । इसमें मंत्री ,अधिकारी और बड़े-बड़े उद्योगपति शामिल होते हैं। घोटाले दो-चार लाख के नहीं होते। दो-चार करोड़ के घोटाले भी प्रतिष्ठित घोटाले नहीं कहलाते हैं । जब तक सौ,दो सौ ,चार सौ करोड़ का घोटाला न हो, उसका नाम घोटालों की टाप टेन लिस्ट में शामिल नहीं होता । आजकल घोटाले हजारों करोड़ से लेकर एक-एक लाख करोड़ तक के होने लगे हैं। यह इतनी बड़ी धनराशि होती है कि किसी की समझ में भी आसानी से नहीं आएगा कि एक लाख करोड़ रुपए किसको कहते हैं। इतने बड़े-बड़े घोटाले कोई मामूली आदमी नहीं कर सकता। इसके लिए बहुत बड़ा दिमाग चाहिए, हुनर चाहिए ।अकलमंद, दृढ़ प्रतिज्ञ , दूरदर्शिता से संपन्न , फौलादी इरादों वाला व्यक्ति ही बड़े-बड़े घोटाले कर सकता है। हमारे देश में नेता लोग घोटाले करते हैं । उद्योगपति हजारों करोड़ के घोटाले करते हैं। कुछ लोग घोटाले करके विदेश भाग जाते हैं । कुछ लोग देश में ही डटे रहते हैं और एक घोटाले के बाद दूसरा घोटाला करते रहते हैं । कुछ लोग जेल चले जाते हैं। कुछ लोग जमानत पर छूट जाते हैं । कुछ लोग कानून की गिरफ्त से बाहर रहते हैं । वह भले लोग कहलाते हैं , जब तक कि उन पर कानून का शिकंजा नहीं कसता ।
अव्यावहारिक कानूनों के कारण रिश्वत बढ़ती है । जब नियमानुसार कोई काम नहीं हो पाता , तब व्यक्ति नियम से हटकर अपनी फाइल पास कराता है और तब रिश्वत का नाम सुविधा शुल्क हो जाता है ।अर्थात ऐसा शुल्क जो आपके कार्य को सुविधाजनक रीति से पूरा कर देता है । ज्यादातर सरकारी कार्यालयों में बिना सुविधा शुल्क के कोई काम नहीं होता । अगर आप सुविधा शुल्क नहीं देना चाहते तो असुविधा उठाते रहिए। अर्थात एक के बाद दूसरी कमियों को आप कागजों के द्वारा पूरी करिए। बार-बार दफ्तर के चक्कर काटने और अंत में आपको सिवाय असफलता के कुछ हाथ नहीं लगेगा। सुविधाजनक नीति से सारे काम हो जाएं ,इसी के लिए सुविधा शुल्क बना है।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश)
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