किसे फर्क पडता है
पडना ही चाहिए फर्क,पर किसे पडता है,
मानवीय मूल्यों पर,आज रणनीति भारी है.
रणनीति भी वर्चस्व कारणे, लडी लडाई है,
किसे पडता है फर्क,जो स्वाभाविक भूख है,
धर्म कोई वस्त्र नहीं, दिखावे का मंजर है,
भूख नहीं, प्यास नहीं, प्रेम निसर्ग भूल नहीं.
प्राकृतिक आपदा के सामने, कोई लेख नहीं,
करते रहे अभ्यास, समाधान में कोई मंत्र नहीं.
ऊर्जाओं में बाँध लिया,छूटते साँस लौटते नहीं,
सार्वजनिक स्थलों पर, एकल अधिकार हैं..
बसते नहीं जहाँ ईश्वर, लोग खोजते आये है.
जीवन की लीला है,अण्ड फूल चढाने जाते है,
हो सकता है समाधान, गर उलझन को समझे,
कैदी वो नहीं जो, सजा काट कर बाहर निकले.
हर कोई नहीं जो हर मंजर को,पढ सुलझ जाये.
अटपटे काम है महेन्द्र, झटपट नहीं सुलझते …
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस