किसे कोसूँ
एक तरफ रोकता है
यह हाथ जुर्म करने को,
वही दूसरा हाथ दागदार है
पेट की आग बुझाने को;
कभी डरता हूँ लोगों को
अपना परिचय देने में ,
कभी डराकर लोगों को
लूटता हूँ आसानी से उन्हें;
बेबस हो जाता हूँ कभी
खुद से नफरत करने लगता,
किस्मत को या करम को
कोसूँ किसे मालिक मुझे बता ।