किसी को सदाक़त का ताना भी मुश्किल
किसी को सदाक़त का ताना भी मुश्किल
कमी उसकी उसको गिनाना भी मुश्किल
वो सुनता नहीं है सुनाना भी मुश्किल
उसे आइना तक दिखाना भी मुश्किल
मुहब्बत पे मेरी न उसको यकीं है
जताना भी मुश्क़िल निभाना भी मुश्किल
बड़ी तेज आँधी यहाँ चल रही है
दिया बुझ रहा है जलाना भी मुश्किल
लपकता नहीं वो न है ज़ोश उसमें
दिलो-जाँ हुआ है लुटाना भी मुश्किल
नहीं दे रहा है वो मौक़ा कोई भी
परेशान हूँ आज़माना भी मुश्किल
हैं बीमारियाँ और कहीं मुफ़लिसी है
जहाँ में हुआ मुस्कुराना भी मुश्किल
क़दम अब हमारे ज़रा थक गये हैं
क़दम ज़ोश में अब बढ़ाना भी मुश्किल
अगर आ गया था तभी रोकना था
यहाँ फिर से ‘आनन्द’ आना भी मुश्किल
-डॉ आनन्द किशोर