किसान
किसान
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हमारे देश का किसान
दिन रात पसीना बहाता है,
दिन को दिन और
रात को रात नहीं समझता है।
फिर भी परेशान
फटेहाल रहता है।
अपने श्रम और लागत का
मूल्य भी जब नहीं पाता,
जब लाचारी बेबसी में
कर्ज के बोझ तले जब दबता जाता,
अपने परिवार के
मुर्झाये चेहरों को देख
आह भर कर रह जाता।
अपने बच्चों की जरूरतों को
जब आँसुओ संग पीना पड़ता,
सरकारी घोषणाएं जब सिर्फ
घोषणाएं बनकर रह जाती,
उसकी ही बेबसी जब
उसको मुँह चिढ़ाती।
तब हताश, निराश, परेशान
हमारा अन्नदाता हार जाता है,
हर आस जब बिखर सा जाता
तब उसके सामने
आत्महत्या करने सिवा
कोई रास्ता नहीं बच पाता।
✈सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921