किसान और मजदूर
छुपाकर दर्द अपने,
भूलाकर वेदना अपनी,
दो रूखी सूखी रोटी
एक प्याज एक पानी की
तिरपाल से बनी बोटल
खेत की और पैदल चला.
मालिक नहीं मजदूर बन
पहले खुद काम पर जुटा.
कड़ी मेहनत के बावजूद.
टमाटर एक क्विंटल ः
भिंडी एक मण,बैगन एक धड़ी
ऊंट गाडी से लेकर.
मंडी की और बढ़ा.
सबका मोल कुल सौ रूपये बना,
पचास रूपये किराया ऊंट गाडी.
पचास रूपये मजदूरी.
मालिक वहीं खडे देखता रहा,
पेड़ की छाँव देखकर वह आगे बढ़ा,
एक प्याज की गंठी फोड़
दो रूखी सूखी रोटी खाकर
घर वापिस आने को आगे बढ़ा.
अपने कर्म, अपने धर्म पर.
आगे बढ़ते रहा,
अपने परिश्रम को कला मान,
देश समाज को समर्पित होते चला गया,
स्वतंत्र भारत के गणतंत्र परिवार पर नाज करते आगे बढ़ा,
उम्मीद इन्हें सरकार से नहीं,
सरकार को इनसे उम्मीद थी,
पीडा तो असल जब बढी.
सरकार के हाथ,नहीं इनके साथ,
दुखती नब्ज पर हाथ रख,
गर्दन तक पहुंच गयीं.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस