Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Sep 2022 · 4 min read

किन्नर बेबसी कब तक ?

किन्नर जिन्हें हमारे सभ्य समाज में ट्रांसजेंडर, थर्डजेंडर, हिजडे व किन्नर आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है इनकी खुशी जहाँ आपके भाग्य में वृद्धि करती है वहीं इनकी नाराजगी आपको भाग्यहीन बनाने की क्षमता भी रखती है, यही नहीं इन्हें मंगलमुखी भी कहा जाता है इसी लिए इन्हें शादी, जन्म, त्योहारों जैसे शुभ कार्यों व अवसरों पर आमन्त्रित किया जाता है जहाँ पर लोग अपनी हैसियत के अनुसार उन्हें धन, आभूषण, कपड़े आदि भेट देते हैं, इन्हें नाराज नहीं किया जाता इनकी नाराजगी पीड़ा का कारण बन सकती है इसलिए लोग इन्हें नाराज नहीं करते और जहाँ मान्यता हो कि किन्नरों को देने से भाग्य में वृद्धि होती हैं उनका आशीवार्द उनकी बददुआ कभी खाली नहीं जाती, तब कौन भला उन्हें नाराज करना चाहेगा लेकिन ये वास्तविकता भी अपनी जगह है कि दुःख के अवसर पर उन्हें बुलाया नहीं जाता है। बहरहाल इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज भी इनक स्थिति में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है. कुछ उदाहरणों को छोड़ दें तो आज भी कह सकते हैं कि किन्नरो की स्थिति पहले की भांति ही दयनीय है, समाज की मुख्यधारा से कटे हुए ये आज भी समाज के लोगों की संवेदनहीनता शिकार बने हुए हैं कैसी विडम्बनात्मक स्थिति है कि इंसान रूप में जन्म लेकर भी एक शारीरिक दोष के कारण ये उपेक्षित जीवन ही नहीं जीते बल्कि समाज से कट भी गये हैं। इनके दर्द को समझना सुनना तो दूर इन्हें अपने पास खड़ा करन भी गवारा नहीं करता, रोजगार देना तो बहुत दूर की बात है इन्हें देख कर लोगों द्वारा मजाक उड़ाना हंसी बनाना उनके नज़र आते ही बच्चों का उनके पीछे भागना तालियां बचा कर आनंदित होना संवेदनशीलत की हदे पार कर देता है किसी का दिल दुखाने से बड़ा गुनाह या पाप कोई और नहीं हो सकता ये बताने की जरुरत नहीं और वैसे भी जब हम किसी की पीड़ा को कम करने का साहस नहीं रखते हैं तो हमें कोई अधिकार भी नहीं बनता कि हम किसी की पीड़ा पर किसी की कमी पर हंसी ठिठोली करके आनन्द लें। कैसी विडम्बना है। इन अभागे किन्नरों की जहाँ प्रकृति की गलती की सजा उन्हें बेंकुसूर होकर भी भुगतना पड़ती है, कैसा दर्द है कि जहाँ उनका अपना परिवार ही उन्हें स्वीकार से इंकार कर देता है वहाँ समाज से उन्हें स्वीकार करनी की बात सोचना ही व्यर्थ है, हर तरफ से त्याग दिये जाने की पीड़ा किन्नरों की हार्दिक और मानसिक अवस्था की दयनीयता को दर्शाती है, हम सोच भी नहीं सकते कि वह अपने तिरस्कार के अपमान की इस पीड़ा को कैसे सहन कर पाते होंगे, सभ्य कहलाने वाले समाज में इनकी उपस्थिति को स्वीकारा नहीं जाता इसलिए इन्हें कोई काम देना भी पसंद नहीं करता कोई रोजगार न होने की वजह से इन्हें मजबूरी में रेड लाइटो पर भीख मांगते हुए भी देखा जा सकता है भीख में मिले पैसो से वो अपनी गुज़र बसर करते हैं वही खूबसूरत दिखने वाले किन्नर विवशता वश वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को भी अपनी जीविका का माध्यम बना रहे हैं।
बहुत अफसोस और आश्चर्य होता है कि आज तरक्की के इस दौर में भी हमारे सभ्य समाज में किन्नरों की उपस्थिति को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं है इसमे दोष हमारे समाज का ही नहीं है बल्कि सरकार का भी है जो अभी तक इनकी सुरक्षा और उनके अस्तित्व के लिए कोई ठोस और जमीनी स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठा पाई है हालांकि 15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को इज्जत से सर उठाने का अधिकार प्रदान किया उन्हें थर्ड जेंडर घोषित किया वो सब अधिकार भी दिये जो पिछड़ी जातियों को प्राप्त है लेकिन वास्तविकता के घरातल पर उनकी क्या स्थिति है यह बताने की आवश्यकता नहीं।
सवाल यह है कि हम कौन होते है प्रकृति की नाइंसाफी की सजा देने वाले इंसान होकर दूसरे इंसान को केवल उसके शारीरिक दोष के कारण इंसान न समझना क्या उचित है ? धर्म और संस्कृति में जिनकी उपस्थिति को स्वीकारा गया है उसके उपरान्त भी उन्हें बुनियादी संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया है, यही कारण है कि किन्नरों के अपने कानून और अपने रीति-रिवाज है ये मृत्यु के उपरान्त मुर्दे को जलाते नहीं है बल्कि दफनाते हैं और किसी गैर किन्नर को मृतक का मुंह नहीं दिखाते, इसके पीछे इनकी मान्यता रहती है कि दिखाने से अगले जन्म में मृतक फिर किन्नर के रूप में जन्म लेता है। यही कारण है कि समाज के हाशिए पर खड़ा बेकसूर किन्नर समुदाय आज भी अपनी गरिमा अपने अस्तिव की कठिन लड़ाई लड़ रहा है ये जानते हुए भी समाज की मानसिकता को बदलने में अभी वक्त नहीं सदियाँ लगेंगी, और वैसे भी बिना मानसिकता के बदले किन्नरों की स्थिति में सुधार की गुंजाइश फ़िलहाल असंभव ही है।
डॉ फौज़िया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: लेख
9 Likes · 165 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr fauzia Naseem shad
View all
You may also like:
* बिखर रही है चान्दनी *
* बिखर रही है चान्दनी *
surenderpal vaidya
एक नज़र में
एक नज़र में
Dr fauzia Naseem shad
कहीं फूलों की बारिश है कहीं पत्थर बरसते हैं
कहीं फूलों की बारिश है कहीं पत्थर बरसते हैं
Phool gufran
'गुमान' हिंदी ग़ज़ल
'गुमान' हिंदी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
सुविचार
सुविचार
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
*प्यार का रिश्ता*
*प्यार का रिश्ता*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
फिक्र (एक सवाल)
फिक्र (एक सवाल)
umesh mehra
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
कृष्णकांत गुर्जर
"जो लोग
*Author प्रणय प्रभात*
विषाद
विषाद
Saraswati Bajpai
चाहत
चाहत
Dr Archana Gupta
2290.पूर्णिका
2290.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
निर्लज्ज चरित्र का स्वामी वो, सम्मान पर आँख उठा रहा।
निर्लज्ज चरित्र का स्वामी वो, सम्मान पर आँख उठा रहा।
Manisha Manjari
*भगत सिंह हूँ फैन  सदा तेरी शराफत का*
*भगत सिंह हूँ फैन सदा तेरी शराफत का*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
माँ का अबोला / मुसाफ़िर बैठा
माँ का अबोला / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
कभी अपने लिए खुशियों के गुलदस्ते नहीं चुनते,
कभी अपने लिए खुशियों के गुलदस्ते नहीं चुनते,
Shweta Soni
दूषित न कर वसुंधरा को
दूषित न कर वसुंधरा को
goutam shaw
मैं हू बेटा तेरा तूही माँ है मेरी
मैं हू बेटा तेरा तूही माँ है मेरी
Basant Bhagawan Roy
‼️परिवार संस्था पर ध्यान ज़रूरी हैं‼️
‼️परिवार संस्था पर ध्यान ज़रूरी हैं‼️
Aryan Raj
देखिए बिना करवाचौथ के
देखिए बिना करवाचौथ के
शेखर सिंह
बिखरने की सौ बातें होंगी,
बिखरने की सौ बातें होंगी,
Vishal babu (vishu)
मेरी भौतिकी के प्रति वैज्ञानिक समझ
मेरी भौतिकी के प्रति वैज्ञानिक समझ
Ms.Ankit Halke jha
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
Dr Tabassum Jahan
"जुबांँ की बातें "
Yogendra Chaturwedi
*छल-कपट को बीच में, हर्गिज न लाना चाहिए【हिंदी गजल/गीतिका】*
*छल-कपट को बीच में, हर्गिज न लाना चाहिए【हिंदी गजल/गीतिका】*
Ravi Prakash
चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
चिड़िया बैठी सोच में, तिनका-तिनका जोड़।
डॉ.सीमा अग्रवाल
गुरुकुल भारत
गुरुकुल भारत
Sanjay ' शून्य'
जिंदगी है खाली गागर देख लो।
जिंदगी है खाली गागर देख लो।
सत्य कुमार प्रेमी
"परिवर्तन"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...