किताबी ज्ञान
गीत
किताबों में ज्ञान जो पढता इंसान है ।
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है ।
हजारों में दो चार बनते हैं ज्ञानवान,
पढा लिखा ज्ञान जिनके काम आ जाता हैं ।
जिनके व्यवहार में होता नहीं सीखा ज्ञान ,
किताबी ज्ञान कह समाज चिढाता है ।
दिन रात एककर किताबें जो पढता है ,
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है ।
रावण सा पढ़ा लिखा नहीं कोई दूसरा ,
आचरण व्यवहार से कुल को लजाता है ।
पढ़ा लिखा आज भी जानता है युद्ध फल ,
लड़ने के समय परिणाम भूल जाता है ।
किसे कहे ज्ञानी जो सुनता नहीं बात है ,
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है ।
पढ़े लिखे ज्ञानवान संसद सदस्य सब,
बहुमत के नाम पर वक्फ बन जाता है।
पढ़ा होगा सुना होगा दो दशक पहले ,
किसान की मजबूरी में कोर्ट ही बताता है ।
समानता के नाम पर छल किया जाता है,
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है। ।।
स्वार्थ के त्याग की शिक्षा थी किताबें में,
दुनिया का हर मानव स्वार्थ ही अपनाता है।
कैसे कहें ज्ञानवान बना रही पुस्तकें,
चतुर, होशयार धनवान बन जाता है ।
पढा खूब लिखा खूब कपट ही भरा है ,
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है ।।
सबने पढा परिवार संयुक्त ही चाहिए
फिर क्यों आधुनिक एकल घर बसाता है ।
पढ़ी है किताबें खूब जानते हैं हानि लाभ,
मानते हैं विरले ही फिर भी ज्ञान वान है ।
इसी को बुद्धिमान किताबी ज्ञान कहता हैं ,
ज्ञानवान बनने जीवन खपाता है ।।
राजेश कौरव सुमित्र