कितना बदल रहे हैं हम
कितना बदल रहे हैं हम ? ये ऐसा विचारणीय प्रश्न है, जिसकी गहराई में जाकर ही हम इसका सही उत्तर दे सकते हैं, ये सही है कि आज वक़्त ही नहीं हम भी बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं हमारी जीवन शैली भी पूर्णता बदल गई है, रिश्ते कमज़ोर हो रहे हैं, विश्वास टूट रहे हैं,मानसिक आर्थिक तनाव के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं, वृद्धाश्रम की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और सबसे चिंताजनक बात कि आज दूध पीती अबोध बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चे गंभीर अपराधों में लिप्त हो रहे हैं,कहीं भीड़ कानून अपने हाथ में ले रही है तो कहीं महिलाएं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है, कहीं रक्षक भक्षक की भूमिका निभा रहे हैं, तो कहीं रिश्तों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली घटनाएँ हमारे समक्ष आ रही हैं ,कहीं साम्प्रदायिकता में लोग अंधे होकर लोग मरने मारने को उतारू हैं ,यहाँ हमारी इंसानियत ही शर्मसार नहीं होती है बल्कि हमारी परवरिश, हमारे संस्कार ,हमारा आचरण भी परिभाषित होता है ,और मानसिकता का स्तर भी देखने को मिलता है, आज मूल्यों और नैतिकता के गिरते पतन ने लोगों की संवेदनशीलता को संवेदनहीनता में परिवर्तित कर दिया है यही कारण है कि स्वार्थ अपनी चरम सीमा पर है और सब कुछ होकर भी आत्मिक संतुष्टि नहीं लोग तंहा है मतलब के बिना कोई किसी से सम्बन्ध रखना पसंद नहीं कर रहा है ,किसी का दर्द अब किसी को छूकर नहीं गुज़र रहा है ,अफ़सोस आज सही और ग़लत का अंतर मिट चुका है क्या पा रहे हैं क्या खो रहे हैं कोई सोचना नहीं चाहता, ऐसा बदलाव ऐसी सोच ऐसी मानसिकता किस काम की जिसमें इंसान अपनी इंसानियत को ही भूल जाये, सही ग़लत के अंतर को ही मिटा बैठे ? आज ज़रूरत है खुद से सवाल करने की ,ज़रूरत अपने इंसान होने की विशेषताओं को तलाशने की है , और साथ ही सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाने की है , ज़रूरत है शिक्षा के विस्तार की है , ऊंच नीच के भेद को मिटाने की है , ज़रूरत एक इंसान को दूसरे इंसान को सम्मान देने की है , एक दूसरे की कमियों को नज़र अंदाज़ करने की है , एक दूसरे की मदद करने के जज़्बे को स्वयं में उत्पन्न करने की है, अपने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर बनाने की है, अपनी सोच को निष्पक्ष बनाने के साथ तार्किक बनाये रखने की भी है, समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की है ,खुद पर विश्वास करने की है,और जीवन का क्या उद्देश्य है,उसको गम्भीरता से समझने की है।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद