कालवेदी पर जीवन रत हो,
कालवेदी पर जीवन रत हो,
मस्तक नत हो उससे पहले,
इतिहासों के पन्नो पर ,
एक स्वर्णिम चित्र बना जाऊँ मैं।
मानव श्रम को पा जाऊँ मैं।
स्वार्थ भाव मिटा जाऊँ मैं।।
परहित का संकल्प लिए,
जीवन संचालन करना है अब।
अपने जीवन के रंगों को,
पर जीवन में भरना है अब।
ज्ञान दीप की लौ लेकर,
घर घर मे दीप जला जाऊँ मैं।
मानव श्रम को पा जाऊँ मैं।
स्वार्थ भाव मिटा जाऊँ मैं।।
दीन दुःखी दरिद्र जनो में,
कर पाऊँ भगवान का चिंतन।
वसुधा सकल कुटुंब बने,
और सहज आत्मा का हो मंथन।
नवल ज्ञान का नया गीत,
अब नवल राग में गा जाऊँ मै।
मानव श्रम को पा जाऊँ मैं।
स्वार्थ भाव मिटा जाऊँ मैं।।