कालरात्रि
# माँ कालरात्रि
रक्तबीज जन्मा जग माही ।
करहि उपद्रव डरता नाही ।।
कारण उसे मिला वरदाना ।
नारी हाथ मृत्यु निज जाना ।।
रक्त बूँद पडते ही धरती।
उपजे पुनः देह नहि मरती ।।
देव लोक तक सब भयभीता।
शिव से विनय करें मन प्रीता।।
हो प्रसन्न शंकर भगवाना।
कहा शिवा अब करो निदाना।
आज्ञा मान लडी माँ अम्बा।
द्वंद्व युद्ध करती जगदम्बा।।
रक्तबीज को माँ ललकारा।
खड्ग प्रहार रक्त बह धारा।
रक्त बूँद धरती पर आई।
बूँद बूँद से फिर हो जाई।।
क्रोधित होकर माँ जगदम्बे।
कालरात्रि बन प्रकटी अम्बे।।
खप्पर हाथ मुंड गल माला।
रूप भयंकर बाहु विशाला।।
द्वंद्व युद्ध कर निश्चर मारा।
बजी दुंदभी जग जयकारा।।
शुभंकारी नाम जग पाया ।
अशुभ वेश देवन यश गाया।।
त्रिनेत्री देवी नहीं दूजी।
ब्रह्मा विष्णू शिव मिल पूजी।।
जब जब भू पर संकट आता ।
कालरात्रि बन जाती माता ।।
सिंह सवारी देह उघारी।
काल रूप दर्शन भयकारी।।
भूत प्रेत राक्षस सब डरते ।
भक्ति भाव से संकट कटते ।।
राजेश कौरव सुमित्र