*”कालचक्र”*
“कालचक्र”
चौरासी लाख योनियों के बाद ही मनुष्य जन्म है मिलता।
सृष्टि रचना की पुनरावृत्ति ,परिवर्तन से फिर पुनर्मिलन हो जाता।
कालचक्र निरंतर चलने वाला , कभी न रूकता कभी न थमता।
जन्म मरण मृत्युपर्यन्त तक, कर्म बंधन में बंधते जाता।
शाश्वत सत्य कालचक्रतंत्र की माया को सच्चा मानव ही समझ पाता।
कालचक्र के घेरे में व्यर्थ न समय गंवा दो समय बीत जाये तो फिर वापस लौट कर नही आता।
जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों पड़ावों पर जीवन सफर कराता।
युगो युगों तक चली आ रही प्रथाओं ,परम्परायें पीढ़ी दर पीढ़ी चलते ही जाता।
संस्कृतियों , सभ्यताओं से मानव संसाधन को प्रकृति बोध कराता।
शाश्वत सत्य के अवलोकन से खुद अपने को समेटकर नया इतिहास बनाता।
हार न सके कोई जीत न सके, समय बड़ा बलवान कालचक्र अनवरत चलता ही रहता।
शशिकला व्यास ✍️