मोबाइल के भक्त
काम क्रोध मद लोभ ज्यों
नाथ नरक के पंथ।
रामायण में लिख गए,
तुलसी जैसे सन्त।
तुलसी जैसे सन्त,
आज त्यों और एक व्याधी।
मोबाइल संग लग रही,
लोगों की पूर्ण समाधी।
ऊँगली नाचे अनवरत,
मोबाइल करे बाध्य।
इंस्टा, ट्वीटर फेशबुक,
बन गया रोग असाध्य।
यू ट्यूब बन गया पूजा स्थल,
जन मानस यजमान।
सब को दर्शन मिल रहा,
गूगल है भगवान।
सोशल मीडिया धाम पर,
सभी धर्म के भक्त।
रिश्ते नाते दोस्त तज,
फोन पर सभी विरक्त।
मोबाइल प्रयोग हो,
मतलब भर प्रिय सन्तम।
कह सृजन कविराय,
व्यसन का कीजै अंतम।
-सतीश सृजन