काफिला यूँ ही
ग़ज़ल
हो गया कितना बावला यूँ ही
आँख से हो गई खता यूँ ही
लोग मिलते रहे जुदा भी थे
साथ में चलता काफिला यूँ ही
याद फिर रोज वो लगे आने
पहले जिनको भुला दिया यूँ ही
चाह थी गर तो कह दिया होता
भागता क्यों रहा बता यूँ ही
सुन रखा था कि आज देख लिया
दिल को लेते हैं वो चुरा यूँ ही
वक्त ये अब उसे कहाँ लाया
डूबता प्यार में रहा यूँ ही
था वो सुधा वो कलाकार बड़ा
मुझको अपना बना लिया यूँ ही
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी