कान्हा
रे सखी
आज कान्हा
फिर इठलाये है
सुबह से शाम तक
वो छुपो छुपो
हमें तडपाऐ है
रे सखियो
तू इते देख
तू उतो देख
श्याम को तो
मै ही देख पाऐगी
वॄन्दावन की
गलियन में
कॄष्णा अकेला
भटक जाऐगो
रे सखियों
तू इत गली
तू उत गलियन
तनिक देख के आ
मैं तो जानू
नन्दलाल को मिलनो
मोसो है
तबी छिपाछिपाई
कर रहो
सखियां देख
(स्वरचित)
लेखक संतोष श्रीवास्तव बी 33 रिषी नगर ई 8 एक्स टेंशन बाबडिया कलां भोपाल