कान्हा महाजन्माष्टमी है आज,
एक बात का स्मरण कराते हुए तूझे मैं हो रही हूँ तूझ पर नाराज़।
पंचाली की लाज बचाने के लिये द्वापर युग में तुने वस्त्र किये थे प्रदान।
इस युग में भी आफ्दा आयी है बड़ी,
द्रौपदी फिर है संकट में पड़ी।
रक्षक बनके तो आता नही,
रक्षा तो तू करता नही।
रणछोर सच में बन गया है रे तू,
द्रौपदी अब स्वयं ही शस्त्र उठा ले रे तू।