कान्हा जो रोए
कान्हा जो रोए चाँद पकड़ने को हाथ में
भरकर के पानी रख दिया माँ ने परात में
गोकुल में नदी दूध की गउओं ने बहा दी
मक्खन चुरा के खाया जो दीनों के नाथ ने
सोती थी जब हयात,प्रभु से खेल खेलने
आते थे सितारे भी उतरकर के रात में
आई थी पूतना पिलाने को जहर मगर
था कालकूट दूध के नन्हें से दाँत में
हर फन को जमाने में दिखाने के वास्ते
सोलह कलाएँ ले के वो आए थे साथ में
कारण यही है मथुरा पे कब्जा है श्याम का
बैठे हैं जबकि राम जी तम्बू – कनात में