कानून तोड़ना (व्यंग्य)
गुलामी में तोड़ा था कानून,
आज भी पढ़ते इतिहास में।
सराहा जाता है उन्हें हरदम,
सम्मिलित जो नमक कानून में।
आज आजादी के बाद तोड़ते,
कानून हम नित नए।
पर पूछता तक नहीं कोई,
कैसा है परिवर्तन।
हमने दहेज कानून तोड़ते,
देखा कई लोगों को।
बिना हेलमेट बाइक चलाते,
गौरव पाते लोगों को।
पालीथीन पर रोक लगी,
ले जाते देखा लाखों को।
प्रतिबंध लगा पटाखो पर,
जलते देखा रातो को।
पर अंतर देखा आजादी में,
नहीं पहुंचा कोई सलाखों में।
आजादी और गुलामी का,
फर्क जरा सा है।
गुलामी में कानून तोड़ना,
जुर्म होता था।
आजादी में कानून तोड़ना,
बस एक तमाशा है।
राजेश कौरव सुमित्र