कांच चुभाता दरिया
कितने पत्थर
मार रहा है
फिर भी
वह दर्पण नहीं टूट रहा
दूर से लग रहा एक दर्पण
पास जाकर देख ले
पारे का एक तपता हुआ
बहता हुआ
सब कुछ पिघलाता हुआ
एक पहाड़ी की कोख की आग से
फूटता कोई झरने सा
दिखता कांच चुभाता
दरिया न हो।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001