कांच के बर्तन से टूट रहे
कांच के बर्तन से
टूट रहे हैं
दिल की तन्हाई में
दूर से आती कोई
शहनाई की धुन भी पर
कानों को
सुन रही है
इन बेरुखी सी
रुसवाइयों में
जी चाहता है
जन्म लेती रहूं
बार बार और
दम तोड़ती रहूं
अपनी ही बाहों में
दफन होती रहूं अपनी ही
कोख में
फिर जन्म लूं
किसी नशीली रस भरी
प्रेम की अंगड़ाई को
देखने के लिए।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001