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19 Jun 2022 · 3 min read

काँच के रिश्ते ( दोहा संग्रह)

समीक्ष्य कृति: काँच के रिश्ते ( दोहा संग्रह)
कवयित्री: शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’
प्रकाशक: साहित्यागार,धामाणी मार्केट की गली,चौड़ा रास्ता,जयपुर
प्रकाशन वर्ष: 2019
मूल्य: ₹ 200, पृष्ठ-100 (सजिल्द)
‘काँच के रिश्ते’ कवयित्री शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’ जी का दूसरा दोहा संग्रह है। इससे पूर्व आपका एक दोहा संग्रह ‘बाकी रहे निशान’ नाम से प्रकाशित हुआ था। पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीय अमरनाथ जी ने लिखी है। भूमिका में आपने पुस्तक के सभी सकारात्मक पक्षों पर सोदाहरण विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है।इसके अतिरिक्त पुस्तक के फ्लैप पर श्री नवीन गौतम, लेखक एवं साहित्यकार ,कोटा ( राजस्थान) ने भी अपने विचार ‘ भावात्मक रिश्तों का दस्तावेज- ‘ काँच के रिश्ते’ के रूप में व्यक्त किए हैं।दोनों वरेण्य साहित्यकारों के अभिमत को पढ़ने से दोहा संग्रह की विषय-वस्तु एवं उसके कलापक्ष को सरलता से समझा जा सकता है।
काँच के रिश्ते’ दोहा संग्रह में कुल 689 दोहे हैं, जिन्हें सात शीर्षकों में विभाजित किया गया है। प्रथम शीर्षक है- प्रास अनुप्रास दोहों में सरस्वती की वंदना।इसके अंतर्गत सात दोहे हैं।इन सभी दोहों पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है कि पहले दोहे के चतुर्थ चरण को दूसरे दोहे के प्रथम चरण के रूप में प्रयुक्त किया गया है।यह क्रम सातवें दोहे तक आद्यंत चलता रहता है। कवयित्री द्वारा किया गया यह एक अनूठा प्रयोग है।
दूसरे शीर्षक के अंतर्गत दोहे में ‘गुरु महिमा’ का वर्णन है। सरस्वती वंदना के पश्चात गुरु महिमा से संबंधित दोहों को रखना कवयित्री का अपने गुरु के प्रति आदर एवं श्रद्धाभाव को प्रदर्शित करता है। चूँकि हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से बढ़कर बताया गया है, अतः कवयित्री भी उसी परंपरा का निर्वहन करती है। गुरु महिमा से संबंधित एक दोहा द्रष्टव्य है-
जड़वत भी ज्ञानी बने,पा गुरुवर से ज्ञान।
गुरु को नित वंदन करो,भगवन उनको मान।।(पृष्ठ-13)
‘दोहे में दोहे का विधान’ शीर्षक के अंतर्गत सात दोहे रखे गए हैं। इन दोहों में शकुन जी ने दोहा विधान को समझाने का प्रयास किया है। ‘दोहे विविधा’ के अंतर्गत कुल 618 दोहे संकलित हैं।इन दोहों भावगत वैविध्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। एक नायिका के रूप में कवयित्री ने शाम की सिंदूरी आभा का शब्द चित्र खींचा है,वह अवलोकनीय है-
रक्तिम आभा ओढ़कर, आँगन उतरी शाम।
तन-मन करती बावरा, ज्यों अंगूरी शाम।।8 ( पृष्ठ-15)
पारिवारिक रिश्तों में अपनापन बहुत जरूरी होता है।जब भी परिवार के सदस्य मर्यादा का त्याग करते हैं, तो घर की सुख-शांति भंग हो जाती है।संग्रह का निम्नलिखित दोहा उल्लेखनीय है-
आँगन बेपर्दा हुआ, मर्यादा को त्याग।
भीतें क्रंदन कर रहीं, फूटे उसके भाग।।43 ( पृष्ठ-20)
गाँवों से शहरों की ओर पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है। आज गाँव के गाँव वीरान नज़र आते हैं। कहीं लोग पढ़ाई लिखाई के नाम पर ,कभी रोजगार की तलाश में तो कभी बेहतर जीवनयापन हेतु शहरों का रुख कर रहे हैं। गाँवों की इसी दुर्दशा की ओर संकेत करता शकुन जी का दोहा –
गुमसुम हैं पगडंडियाँ, गाँव हुए वीरान।
आहें पनघट भर रहा,कौन धरे अब ध्यान।। 217 ( पृष्ठ-42)
मस्ती भरा यौवन जीवन की पहचान होती है।कभी-कभी मस्ती में युवावर्ग ऐसे रास्ते पर निकल जाता है,जिसका परिणाम भयावह और दुखद होता है। एक छोटी -सी भूल जो कुल-परिवार को कलंकित कर सकती है।युवाओं को सचेत करता दोहा उल्लेखनीय है-
सुरभित होता है शकुन, जब यौवन का फूल।
दाग लगा देती हृदय, बस छोटी-सी भूल।।315 (पृष्ठ 54)
कवयित्री ने सिंहावलोकित दोहे शीर्षक के अंतर्गत 8 दोहे सम्मिलित हैं।इन दोहों में शकुन जी ने दोहे के द्वितीय चरण के तुकांत शब्द की पुनरावृत्ति तृतीय चरण के प्रथम शब्द के रूप में की है।
संग्रह में दुमदार दोहों के रूप में चौबीस दोहे हैं जो भाव भाषा की दृष्टि से समृद्ध हैं।अंतिम शीर्षक ड्योढा दोहे के रूप में चौबीस दोहे हैं।ड्यौढा दोहे में तीन पाद हैं। प्रथम और तृतीय पाद में तुकांतता का निर्वाह किया गया है और द्वितीय पाद का तुक भिन्न है। समग्र संग्रह पर दृष्टिपात से स्पष्ट है शकुन जी ने दोहों में शिल्पगत प्रयोग का प्रयास किया है। वे अपने प्रयोग में सफल भी हुई हैं।
संग्रह के दोहों की भाषा सहज सरल खड़ी बोली हिंदी है। इनमें कहीं -कहीं देशज शब्दों का पुट भी है, जो भाव में बाधक न होकर सौंदर्य में निखार लाने में सहायक सिद्ध हुआ है।दोहों में चित्रात्मकता एवं प्रतीकात्मकता भाव को विस्तारित करने में सक्षम है।अधिकांश दोहे प्रसाद एवं माधुर्य गुण से सुसज्जित हैं। हाँ, कृति में कुछ दोहे ऐसे हैं जिन पर थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता प्रतीत होती है क्योंकि सटीक शिल्प विधान और प्रवाहमयता दोहा लेखन की अनिवार्य शर्त होती है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि ‘काँच के रिश्ते’ एक पठनीय तथा संग्रहणीय कृति है।इस कृति के प्रणयन के लिए कवयित्री को हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ।
डाॅ बिपिन पाण्डेय

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